फुले की सनातन धर्म विरोधी विचारधारा से सैनी यदुवंशी क्षत्रिय भाईचारा सावधान रहे

आजकल पंजाब से बाहर रहने वाले माली  समुदाय के कुछ नेता तथाकथित समाज सुधारक ज्योति राव फुले की विचारधारा को  अधिकाधिक फैला रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस समुदाय के कुछ सदस्य 1936 से कृत्रिम रूप से  सैनी पहचान का उपयोग  कर रहे हैं।

अंग्रेजी युग में सैनी समुदाय को "मार्शल कास्ट" (योद्धा जाति)  का दर्जा प्राप्त था। इससे सैनी युवकों की   बिना किसी बाधा के सीधे सेना में भर्ती हुआ करती थी। कई अन्य जातियों को यह अधिकार प्राप्त नहीं  था और उन्हें सेना में सैनिक की नौकरी मिलना लगभग असंभव था ।  इस कारण सेना  के लिए अयोग्य घोषित जातीय समुदाय अपने नाम बदलकर झूठे और सच्चे इतिहास गढ़कर सेना में नौकरी पाने का भरपूर प्रयास किया करते थे । यहाँ पर हम यह कदापि नहीं कह रहे की अंग्रेजी युग कि एज निति किसी भी दृष्टिकोण से उचित थी। 

हमें सभी राष्ट्रों का सम्मान करना चाहिए लेकिन इसका अर्थ यह कदापि  नहीं है कि हमें अपने इतिहास और वंशानुगत धार्मिक विचारधारा को संरक्षित करने का अधिकार अब समाप्त हो गया  है। इस संबंध में पंजाब और उत्तरी हरयाणा के सैनी समुदाय को सतर्क रहने की अत्यधिक आवश्यकता  है।  माली समुदाय के कुछ नेताओं द्वारा "सैनी" नाम के दुरुपयोग से सैनी समुदाय को बहुत सामाजिक और सांस्कृतिक क्षति हुई है।

(शूर)सैनी वंश के लोगों के लिए सामाजिक क्षति करवाने के पश्चात् कम से कम अपने समुदाय को  धार्मिक क्षति से सुरक्षित रखने का हर प्रयास करना चाहिए।   जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि ज्योति राव फुले की फोटो और उनका सनातन धर्म  विरोधी प्रचार  अब माली समुदाय के कुछ नेताओं द्वारा सोशल मीडिया के दुरूपयोग के द्वारा यदुवंशी सैनी  क्षत्रिय समुदाय पर थोपा जा रहा है। 

ज्योति राव फुले की विचारधारा पंजाब के सिखों और सनातन धर्मियों दोनों के लिए घातक और धर्म विरोधी है। पंजाब और उत्तरी हरयाणा  के यदुवंशी सैनी क्षत्रिय वंश  के युवा इसका खुलकर विरोध करें । फुले के सनातन विरोधी और अति आपत्तिजनक कथनो के कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं। 

 परन्तु प्रथम शास्त्र बोध और सन्दर्भ की  आवश्यकता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंग 1165 पर अर्जुन पातशाह  ने भगत नामदेव जी के के मुख से प्रकट हुई  भगत प्रह्लाद की ईश्वर के प्रति पूर्ण और अटूट भक्ति की पवित्र कथा सुनाई है। यहाँ यह दोहराने की आवश्यकता  नहीं है कि पौराणिक शास्त्रों में भक्त  प्रह्लाद और नरसिंघ अवतार दोनों सिखों और सनातन धर्मियों के लिए अति पावन महापुरुष हैं ।


गिरि तर जल जुआला भै राखिओ राजा रामि माइआ फेरी ॥३॥
Prahlaad was thrown off a mountain, into the water, and into a fire, but the Sovereign Lord God saved him, by changing the laws of nature. ||3||

काढि खड़गु कालु भै कोपिओ मोहि बताउ जु तुहि राखै ॥
Harnaakhash thundered with rage and threatened to kill Prahlaad. "Tell me, who can save you?

पीत पीतांबर त्रिभवण धणी थ्मभ माहि हरि भाखै ॥४॥
Prahlaad answered, "The Lord, the Master of the three worlds, is contained even in this pillar to which I am tied."||4||J

हरनाखसु जिनि नखह बिदारिओ सुरि नर कीए सनाथा ॥
The Lord who tore Harnaakhash apart with His nails proclaimed Himself the Lord of gods and men.

कहि नामदेउ हम नरहरि धिआवह रामु अभै पद दाता ॥५॥३॥९॥
Says Naam Dayv, I meditate on the Lord, the Man-lion, the Giver of fearless dignity. ||5||3||9||

                                                                                                                      (श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी , अंग 1165)

गुरबाणी की  यह पंक्तियाँ श्रीमद भगवत पुराण के सप्तम स्कंध के प्रसंग पर आधारित है। अब देखिए कि ज्योति राव फुले ने सिखों और सनातनियों दोनों के लिए सबसे पवित्र कहानी में भगवान के रूप में प्रकट होने वाले नरसिंह अवतार की कितनी निर्लज भाव और मलेच्छ वृत्ति से निंदा की है |